लाख - लाख झोपड़ियों में तो छाई हुई उदासी है । सत्ता - सम्पत्ति के बंगलों में हँसती के पूरनमासी है ।। यह सब हम न चलने देंगे हमने कसमे खाई है .....! इस मनोहारी नारा को लगाने वालों में कांग्रेस को छोड़कर ज्यादा राजनेता भागे हुए - " जनता पार्टी " से ( भा ज पा ) वालों ने और लल्लू - मुल्लू ने भी खाई थी । न जाने कितनी बार कसमे खा - खाकर , बाद में सभी ने सत्ता का मलाई खाया । जनता फटेहाल और फटीचर ही आजतक रही । सुना है " मोदी " जी भी आज उन्हीं नारों को " संस्कृत " में दोहराएंगे । और उनके पीछे - पीछे अंतरी - मंत्री भी दुहराएंगे । आज तक हमारे नेताओं ने " म्लेच्छ भाषा " में कसमे खाई । भोली भाली जनता सब देखती रही । सारे कसमे टूट गये । धुल धूसर हो गये । मेरे भाई - श्री मोदी " आप देवभाषा में संस्कारित भासा में कसमे खाने जा रहे हैं । जड़ा ऋषियों के आत्मभाषा की लाज रखना । फिर बन्दुक की नली पर जनतंत्र पले न , कलम चलाने वालों पर बंदूके चले न , रोजगार मांगने पर कारागार की हवा खानी पड़े न । कसमें टूटे न जनता रूठे न , ध्यान रखना । इसी में राष्ट्र का और आपका मंगल होग...