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happy 2012

naya sal 2012 ham sabhi ke jiwan me anand awam samridhi leker aaye .ham aese watawaran me aye jaha bhrastachary mukt samaj &samridh sampurn samaj ho.

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* : जनक - याज्ञावल्क्य संवाद : * ~~~ { १० } ~~~

!! श्री गुरुभ्यो नमः !! █░░░░░░░░░░░░░░░░░░░█ * : जनक - याज्ञावल्क्य संवाद : * ~~~ { १० } ~~~ █░░░░░░░░░░░░░░░░░░░█ नारायण ! गुरदेव भगवान् अपने प्रिय शिष्य को कहते हैं कि " हे सौम्य ! " महर्षि याज्ञवल्क्य मिथिला नरेश को समझाते हुए कहते हैं – हे राजन् ! जीव - ब्रह्म के अभेद का अज्ञान मिटाने वाले " मैं ब्रह्म हूँ " इत्यादि श्रुति में आये महावाक्यों के बारे में भ्रान्तजनों को शंका बनी रहती है कि वे प्रमोत्पादक नहीं क्योंकि वे लोग आत्मा में परिच्छिन्नता का अनुभव करने से मानते हैं कि जीव - ब्रह्म का अभेद हो नहीं सकता । वे लोग जब स्वप्न का विचार करते हैं तो वह शंका मिट जाने से उक्त वाक्य प्रमाणकृत्य करने में समर्थ हो जाते हैं क्योंकि जगत् के जन्मादि के प्रति कारण - होना - यह जो ब्रह्म का लक्षण है वह आत्मा में भी है , यह बात सपने में व्यक्त होती है । असमर्थता आदि से शोकयोग्य हुए भी जीव अपनी माया द्वारा स्वयं से नानाविध प्रपञ्च वैसे ही उत्पन्न कर लेते हैं जैसे ब्रह्म मायाशबल हो संसार बनाता है । स्वाप्न प्रपञ्च को जीव अपने में ही स्थापित रखते हैं तथा उस संसार के महेश...

गायत्री मन्त्र का अर्थ

गायत्री मन्त्र का अर्थ ॐ भूर्भुवः स्वः " तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् " । =========================================== जप के पूर्ण फल को या इष्ट की असीम कृपा का भाजन बनने के लिए और जप के समय मन को अनेक कल्पनाओं से विरत करने का साधन मन्त्रार्थ चिन्तन है । इस परम शक्तिशाली गायत्री मन्त्र का अर्थ मैने अनेक लोगों के दूवारा लिखा देखा है । और उन पर व्यंगबाणों की बौछार भी । जो आप सब मनीषी इससे पूर्व पोस्ट में देख चुके हैं । इस मन्त्र का " तत् " और "यो " तथा " भर्गो " शब्द विद्वत्कल्पों की जिज्ञासा के विषय बने रहे । आलोचकों का मुहतोड़ उत्तर दिया जा चुका है । उससे जिज्ञासुओं की जिज्ञासा का शमन भी हुआ होगा । पर कुछ अनभिज्ञों ने तो "भर्गो " की जगह " भर्गं " करने का दुस्साहस भी किया ; क्योंकि " भर्गं " उन्हे द्वितीया विभक्ति का रूप लगा और " भर्गो " प्रथमान्त पद । पहले हम भर्ग शब्द पर चर्चा करते हैं --- भर्ग शब्द हमारे सामने हिन्दी रूप में उपस्थित होता है और जब उसका संस्कृत रूप में...

* : जनक - याज्ञावल्क्य संवाद : * ~~~~~~~~~~~ { १ } ~~~~~~~~~~~

!! श्री गुरुभ्यो नमः !! █░░░░░░░░░░░░░░░░░░░█ * : जनक - याज्ञावल्क्य संवाद : * ~~~~~~~~~~~ { १ } ~~~~~~~~~~~   █░░░░░░░░░░░░░░░░░░░█ नारायण ! बृहदारण्यक उपनिषद् में आता है कि शिष्य ने गुरु के मुख से आत्मा के अनुभव से संबद्ध अनेक प्रकार की कथायें सुनकर पुनः जिज्ञासा प्रकट की : हे भगवन् ! आपने कृपाकर महर्षि ऐतरेय द्वाना प्रतिपादित , महामुनि कौषितकि द्वारा एवं भगवान् आदित्य द्वारा उपदिष्ट नाना प्रकार के इतिहासों और कथाओं समेत आत्मज्ञान मुझे सुनाया । पहले अधिकारिजनों ने आपस में क्या विचार किया , किस निश्चय पर पहुँचे यह बताया । फिस महाराजा इन्द्र ने प्रतर्दन को , राजर्षि अजातशत्रु ने बलाकि गार्ग्य को , महर्षि दध्यङ्ङाथर्वण ने अश्विनिकुमारों को जिस तरह परमात्मा का उपदेश दिया वह क्रमशः सुस्पष्ट किया । तदनन्तर ऋषिप्रवर याज्ञवल्क्य का विविध ऋषियों से जो ब्रह्मज्ञान - विषयक संवाद हुआ वह आपने विस्तार से समझाया । सभी प्रसंगों में तरह - तरह से परमात्मा के साक्षात् स्वरूप का और उसके साक्षात्कार के उपायों का यथाशास्त्र युक्तियुक्त वर्णन आपने किया । भगवन् मेरी अभिलाषा है कि आपकी कृपा से मैं ...