!! श्री गुरुभ्यो नमः !! ══════════ शिष्य – भाव ══════════ संसार के विषयों का ज्ञान तभी हो सकता है जब जिज्ञासु में ज्ञान ग्रहणकरने की क्षमता हो । जिस प्रकार यदि कोई मनुष्य किसी गणितज्ञ के पास किसी प्रश्नको लेकर जावे ; तो गणितज्ञ उससे पूछेगा कि " तुम्हारी योग्यता क्या है ? " क्योंकि हो सकता है कि पूछने वाले को समझाने पर भी समझमें न आवे । अतः पहले अधिकार प्राप्त करने की आवश्यकता है । नारायण! इसी प्रकार " नारद ऋषि " साधन- चतुष्टय सम्पत्ति से युक्त होकर ब्रह्म - विद्या का ज्ञान लेने ब्रह्मऋषि भगवान् श्री सनत्कुमार के समीप गये । सर्वत्र नियम है कि जिज्ञासु के सामने केवल उतनी बातही कहे जितनी उसकी समझ में आ सके अर्थात् वह ग्रहण कर सके । देवर्षि नारद ने वेद - वेदाङ्ग इतिहास पुराणादि एवं समस्त लौकिक विद्याओं के अध्ययन करने का परिचय दिया ।किन्तु इतना अध्ययन करने के पश्चात् भी उन्हें ब्रह्म - ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई । अतः विधिवत् अधिकार प्राप्त करने के पश्चात् उन्होंने प्रार्थना की कि" भगवन् ! आप - जैसे महानुभावों से मैंने सुना है कि -" तरति ...