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Showing posts from July, 2013

" आशा - पिशाचिनी " { २ } :

" आशा - पिशाचिनी " { २ } : नारायण ! अज्ञान हो चाहे ज्ञान , विवेक हो या अविवेक , विषय और इन्द्रियों का संयोग तो हमेशा संभावित होगा ।सामने रूप आयेगा तो आँख का सम्बन्ध होगा ही । जीभ पर गुलाब जामुन { एक प्रकार का मिष्टान्न } रखेंगे तो मिठास आयेगी ही । विषय औरइन्द्रियों का जो संयोग है वह तो सभी प्राणियों का एक जैसा ही होता है । फिर साधकऔर असाधक में अन्तर क्या है ? अभ्यासीकी विशेषता यह है कि सम्बन्ध के काल में वह प्रमाद नहीं करता - सावधान रहता है ,अप्रमादी रहता है । साधारण मनुष्यविषयेन्द्रिय - सम्बन्ध के समयविवेक को जाग्रत् नहीं रखता । विवेकी उस समय विवेक को जाग्रत् रखता है और बड़ेध्यान से देखता है कि " मैंनेइस विषय में जो " आशा" लगायी थी वह पूरी हो रही है या नहीं " । अविवेकी इन सब बातों का ध्यान नहीं रखता , बस यही अन्तर है " मेरे प्रभु" । आशा को काटने का तरीक है पदार्थ के भोग के काल में विवेक को जाग्रत् रखना । तब धीरे - धीरे आशा हट जायेगी । आशा को हटाना है , दिल को मारना नहीं है । दिल को मारना होता है कि पदार्थ की आशा तो है लेकिन क्योंकि मुझे...

" आशा - पिशाचिनी " { १ } : by सर्वज्ञ शङ्करेन्द्र

" आशा - पिशाचिनी " { १ } : by  सर्वज्ञ शङ्करेन्द्र  ( Notes )  !! श्रीअनन्तानन्देन्द्र गुरुवे नमः !!                                                        "  आशा - पिशाचिनी " { १ } : नारायण ! चित्त की एकाग्रता जिन कारणों से नहीं होपाती , उन कारणों को जब तक दूरनहीं किया जाये तब तक तत्त्व का अनुभव संभव नहीं । शिक्षा तो वह होती है जोव्यवहार में आवे , अनुभव में आजाये । जो शिक्षा व्यवहार और अनुभव में आये ही नहीं वह शिक्षा किस काम की । चित्तकी अनेकाग्रता ज्ञान को भले प्रकार से समझने नहीं देती और जब समझ ही ठीक नहीं होगीतो फिर क्रिया ठीक हो ही नहीं सकती । अनेकाग्रता को हटाया कैसे  जाये? भगवान् भाष्यकार आचार्य श्रीशङ्करभगवत्पाद् इतनी सब चीजों को संग्रह करतेहुए अनुग्रह करते हैं : " आशांछिन्धि विषोपमेषु विषय...

" धैर्याङ्कुश " - { १ }

 " धैर्याङ्कुश " - { १ } (   सर्वज्ञ शङ्करेन्द्र  ) नारायण ! अज्ञान को हटाने के लिये बड़े धैर्य की जरूरत पड़ती है । " भगवान् भाष्यकार आचार्य सर्वज्ञ शङ्करभगवत्पाद जी " ने अनुग्रह करते कहा है : " धैर्याङ्कुशेननिभृतं रभषादाकृष्य भक्तिश्रृंखलया । पुरहर चरणालाने हृदयमदेभं बधान चिद्यन्त्रैः ॥ " यह तुम्हारा अज्ञान कैसा है ? कहते हैंयह हाथी की तरह है । हाथी को मारना सरल नहीं होता , पकड़ना भीसरल नहीं होता । धैर्य वाला ही इसे पकड़ सकता है । मदमत्त गजराज को पकड़ना बहुत हीमुश्किल होता है । किसी बड़े राजा को हटाना पड़े तो कितनी युक्ति से काम लेना पड़ेगा! यह अज्ञान तो राजाओं का भी राजा है । हाथी को नियन्त्रित करने के लिए अङ्कुशचाहिये । अङ्कुश के बिना हाथी हाथ में नहीं आयेगा । यहाँ अङ्कुश की जगह क्या है । " धैर्य" । लोग अधीरता के कारण हीवेदान्त - निष्ठा को प्राप्त नहीं करते। वेदान्त की विलक्षणता यह है कि यह अनुभवपहले कराता है बाकी साधन बाद में । नारायण! " ब्रह्म - विद्या " किसीनयी चीज़ का ज्ञान तो है नहीं , आपकी जानी हुई चीज़ का हीज्ञान है...