" आशा - पिशाचिनी " { २ } : नारायण ! अज्ञान हो चाहे ज्ञान , विवेक हो या अविवेक , विषय और इन्द्रियों का संयोग तो हमेशा संभावित होगा ।सामने रूप आयेगा तो आँख का सम्बन्ध होगा ही । जीभ पर गुलाब जामुन { एक प्रकार का मिष्टान्न } रखेंगे तो मिठास आयेगी ही । विषय औरइन्द्रियों का जो संयोग है वह तो सभी प्राणियों का एक जैसा ही होता है । फिर साधकऔर असाधक में अन्तर क्या है ? अभ्यासीकी विशेषता यह है कि सम्बन्ध के काल में वह प्रमाद नहीं करता - सावधान रहता है ,अप्रमादी रहता है । साधारण मनुष्यविषयेन्द्रिय - सम्बन्ध के समयविवेक को जाग्रत् नहीं रखता । विवेकी उस समय विवेक को जाग्रत् रखता है और बड़ेध्यान से देखता है कि " मैंनेइस विषय में जो " आशा" लगायी थी वह पूरी हो रही है या नहीं " । अविवेकी इन सब बातों का ध्यान नहीं रखता , बस यही अन्तर है " मेरे प्रभु" । आशा को काटने का तरीक है पदार्थ के भोग के काल में विवेक को जाग्रत् रखना । तब धीरे - धीरे आशा हट जायेगी । आशा को हटाना है , दिल को मारना नहीं है । दिल को मारना होता है कि पदार्थ की आशा तो है लेकिन क्योंकि मुझे...