Skip to main content

cricket ka girata star

भारतीय क्रिकेट टीम जिसमे दिगज दिगज प्लयेर  है उदहारण
स्वरुप _राहुल द्रबीन,सचिन तेंदुलकर.  ऐसे ऐसे दिगज जो बिस्व प्रसिद्ध है ,
इनके रहते हुए ऑस्ट्रेलिया के साथ भारतीय टीम प्रथम टेस्ट बुरी तरह हारी
और लग raha है की दूसरी टेस्ट भी हारेगी ,जितने दिगज खिलारी है
वो पहले ही ऑस्ट्रेलिया गए थे ताकि पहले से वह के पिचों का अध्ययन
कर सके लेकिन सभ ब्यर्थ जा raha है सारी रणनीति  फेल होती दिख रही है.
हम लोग भगवन से प्रार्थना करे की indean टीम संभल   जाय   और कुछ आछा
कर के भारत लौटे .

Comments

Popular posts from this blog

गायत्री मन्त्र का अर्थ

गायत्री मन्त्र का अर्थ ॐ भूर्भुवः स्वः " तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् " । =========================================== जप के पूर्ण फल को या इष्ट की असीम कृपा का भाजन बनने के लिए और जप के समय मन को अनेक कल्पनाओं से विरत करने का साधन मन्त्रार्थ चिन्तन है । इस परम शक्तिशाली गायत्री मन्त्र का अर्थ मैने अनेक लोगों के दूवारा लिखा देखा है । और उन पर व्यंगबाणों की बौछार भी । जो आप सब मनीषी इससे पूर्व पोस्ट में देख चुके हैं । इस मन्त्र का " तत् " और "यो " तथा " भर्गो " शब्द विद्वत्कल्पों की जिज्ञासा के विषय बने रहे । आलोचकों का मुहतोड़ उत्तर दिया जा चुका है । उससे जिज्ञासुओं की जिज्ञासा का शमन भी हुआ होगा । पर कुछ अनभिज्ञों ने तो "भर्गो " की जगह " भर्गं " करने का दुस्साहस भी किया ; क्योंकि " भर्गं " उन्हे द्वितीया विभक्ति का रूप लगा और " भर्गो " प्रथमान्त पद । पहले हम भर्ग शब्द पर चर्चा करते हैं --- भर्ग शब्द हमारे सामने हिन्दी रूप में उपस्थित होता है और जब उसका संस्कृत रूप में...

* : जनक - याज्ञावल्क्य संवाद : * ~~~ { १० } ~~~

!! श्री गुरुभ्यो नमः !! █░░░░░░░░░░░░░░░░░░░█ * : जनक - याज्ञावल्क्य संवाद : * ~~~ { १० } ~~~ █░░░░░░░░░░░░░░░░░░░█ नारायण ! गुरदेव भगवान् अपने प्रिय शिष्य को कहते हैं कि " हे सौम्य ! " महर्षि याज्ञवल्क्य मिथिला नरेश को समझाते हुए कहते हैं – हे राजन् ! जीव - ब्रह्म के अभेद का अज्ञान मिटाने वाले " मैं ब्रह्म हूँ " इत्यादि श्रुति में आये महावाक्यों के बारे में भ्रान्तजनों को शंका बनी रहती है कि वे प्रमोत्पादक नहीं क्योंकि वे लोग आत्मा में परिच्छिन्नता का अनुभव करने से मानते हैं कि जीव - ब्रह्म का अभेद हो नहीं सकता । वे लोग जब स्वप्न का विचार करते हैं तो वह शंका मिट जाने से उक्त वाक्य प्रमाणकृत्य करने में समर्थ हो जाते हैं क्योंकि जगत् के जन्मादि के प्रति कारण - होना - यह जो ब्रह्म का लक्षण है वह आत्मा में भी है , यह बात सपने में व्यक्त होती है । असमर्थता आदि से शोकयोग्य हुए भी जीव अपनी माया द्वारा स्वयं से नानाविध प्रपञ्च वैसे ही उत्पन्न कर लेते हैं जैसे ब्रह्म मायाशबल हो संसार बनाता है । स्वाप्न प्रपञ्च को जीव अपने में ही स्थापित रखते हैं तथा उस संसार के महेश...

अथ निदिध्यासनम्

<<अथ निदिध्यासनम् >> नारायण ! “ निदिध्यासन ” का मतलब क्या है ? बहुत से लोग इसका मतलब ले लेते हैं कि आँख मीँचकरबैठने को ही निदिध्यासन कहा जाता है । " वार्तिककार भगवान् श्रीआचार्य सुरेश्वर" कहते हैं : " निदिध्यासस्वेतिशब्दात् सर्वत्यागफलं जगौ । न ह्यन्यचिन्तामत्यक्त्वा निधिध्यासितुमर्हति ॥ " आचार्यने यहाँ यह नहीं कहा है कि " मेरी बात सुनने के बाद निदिध्यासन करो " । वेदान्त शास्त्र में मनन , निदिध्यासन सहकृत श्रवण को ज्ञान के प्रति साक्षात् साधन कहा है । श्रवणकरने के लिए निदिध्यासन करें । महर्षि याज्ञवल्क्य ने कहा " आओ बैठो , निदिध्यासन करो । मैं व्याख्यान करूँगातुम निदिध्यासन करो । " सब चीज़ों के त्याग का फल हीआचार्य ने निदिध्यासन कहा है । उस निदिध्यासन का स्वरूप क्या है ? जो निरन्तर गुरु के मुख से सुना जा रहा है , उसका निरन्तर विचार । " अन्तर " काअर्थ होता है - बीच बीच में जगह छोड़ना । " निरन्तर" का अर्थ होता है बीच बीच में जगह न छोड़ना । जिस व्यक्ति कोकिसी कर्म की चिन्ता है वह निदिध्यासन नहीं कर स...