∬ श्री गुरुभ्यो नमः ∬
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" हम जन्मों से रहे पथिक"✍
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" हम जन्मों से रहे पथिक"✍
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प्रश्न : कहो पथिक तुम कौन देश के
और कौन दिशा जाते हो ।
निर्बल , थके , व्यथित लगते
बोल न कुछ भी पाते हो ॥
और कौन दिशा जाते हो ।
निर्बल , थके , व्यथित लगते
बोल न कुछ भी पाते हो ॥
उत्तर : ज्ञान नहीं मैं कहाँ से आया
और कहाँ मुझे है जाना ।
चलते रहने की इच्छा में
खुद को न मैंने पहचाना ॥
और कहाँ मुझे है जाना ।
चलते रहने की इच्छा में
खुद को न मैंने पहचाना ॥
प्रश्न : कौन तुम्हारे मात - पिता
और कौन तुम्हारा गाम ।
कौन देश का मूल निवासी
कौन जाति और क्या नाम ॥
और कौन तुम्हारा गाम ।
कौन देश का मूल निवासी
कौन जाति और क्या नाम ॥
उत्तर : जनम , जनम इस यात्रा में
कई मिले नये मात - पिता
नया देश और नया गाम ,
नई जाति और नया पता
कई मिले नये मात - पिता
नया देश और नया गाम ,
नई जाति और नया पता
प्रश्न : अंतर्मन से सोच के बोलो
कितनी बार धरा पर आए ।
कौन जनम दुर्लभ पाया
कौन पुण्य और पाप कमाए ॥
कितनी बार धरा पर आए ।
कौन जनम दुर्लभ पाया
कौन पुण्य और पाप कमाए ॥
उत्तर : याद नहीं कितने कालों में
कितने जन्म लिए मैंने ।
घोर पाप के कारण ही
तिर्यक में भ्रमण किया मैंने ॥
कितने जन्म लिए मैंने ।
घोर पाप के कारण ही
तिर्यक में भ्रमण किया मैंने ॥
प्रश्न : किस योनि में दुःख मिला
किसमें पाया सुख तन का ।
किसमें भोग रोग से मुक्ति
पूर्णानन्द मिला मन का ॥
किसमें पाया सुख तन का ।
किसमें भोग रोग से मुक्ति
पूर्णानन्द मिला मन का ॥
उत्तर : धी हीन ही भोग - जन्म है
खाना , सोना , मैथुन , भय
चौरासी में नरक यातना
बस दारूण मृत्यु का भय ॥
खाना , सोना , मैथुन , भय
चौरासी में नरक यातना
बस दारूण मृत्यु का भय ॥
कोई पुण्य रहा होगा जो
मनुज देह में जन्म मिला ।
देवों को दुर्लभ यह नर तन
प्रभु दया से सहज मिला ॥
मनुज देह में जन्म मिला ।
देवों को दुर्लभ यह नर तन
प्रभु दया से सहज मिला ॥
प्रश्न : पुरुषार्थ कैसा करना है
मन क्या है और क्या है बुद्धि ।
कलयुग में सब कलुषित है
क्या शौच और कैसी बुद्धि ॥
मन क्या है और क्या है बुद्धि ।
कलयुग में सब कलुषित है
क्या शौच और कैसी बुद्धि ॥
उत्तर : मन , बुद्धि की शुद्धि शौच है
पुरुषार्थ है ईश्वर भक्ति ।
जग - बंधन का विलय " मोक्ष " है
अंतर्मन जागे यह शक्ति ॥
पुरुषार्थ है ईश्वर भक्ति ।
जग - बंधन का विलय " मोक्ष " है
अंतर्मन जागे यह शक्ति ॥
प्रश्न : पाप कौन और पुण्य कौन
रोग कौन इस पीणित मन का ।
सहज , सरल साधन कैसा है
जिससे पाप कटे इस तन का ॥
रोग कौन इस पीणित मन का ।
सहज , सरल साधन कैसा है
जिससे पाप कटे इस तन का ॥
उत्तर : कर्म , वचन , मन से अहिंसा
दिव्य पुण्य और परम धर्म है ।
परचर्चा और पर - निन्दा ही
घोर पाप और महा अधर्म है ॥
दिव्य पुण्य और परम धर्म है ।
परचर्चा और पर - निन्दा ही
घोर पाप और महा अधर्म है ॥
मद , मत्सर , मोह , मान बड़ाई
कपट , कुटिलता कुष्ट रोग है ।
द्वेष , दंभ , दर्प , ईर्षा दाद
पर सुख डाह , भय रोग है ॥
कपट , कुटिलता कुष्ट रोग है ।
द्वेष , दंभ , दर्प , ईर्षा दाद
पर सुख डाह , भय रोग है ॥
मृतिका है नवद्वार देह
आधि - व्याधि का मूल निवास ।
प्रभु प्राप्य का उत्तम साधन
अजपाजप में श्वास - प्रश्वास ॥
आधि - व्याधि का मूल निवास ।
प्रभु प्राप्य का उत्तम साधन
अजपाजप में श्वास - प्रश्वास ॥
भव - बंधन ही भोग रोग है
पतञ्जलि अष्टाङ्ग अराधना ।
यज्ञ , योग कलयुग में दुर्गम
हरिनाम ही सहज साधना ॥
पतञ्जलि अष्टाङ्ग अराधना ।
यज्ञ , योग कलयुग में दुर्गम
हरिनाम ही सहज साधना ॥
नारायण स्मृतिः
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