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॥ मिट्टी का संसार ॥

॥ मिट्टी का संसार ॥
पञ्चभूत से देह बनी है 
वेद , पुराण , ऋषि , सब गाते ।
किसने समझा इस मन्त्र को
सब सुख को ही गले लगाते ॥
जिस क्षण प्राण छोड़ देह को
वायु में मिल जाता है ।
राख हुआ जलकर चोला
मिट्टी में मिल जाता है ॥
मिट्टी ने नव जीवन देकर
एक नया वरदान दिया ।
पुत्र बना माता को भूला
यह कैसा बलिदान किया ॥
संसार टिका है धरती पर
धरा को धारण करता पानी ।
वायु धारण आकाश में
इस तत्त्व को जाने ज्ञानी ॥
वायु में अग्नि का बास है
अग्नि संचित करता पानी ।
मेघ बना फिर बरसाता है
सबको जीवन देता पानी ॥
मिट्टी से ही होती फसलें
मिट्टी से बनता आहार ।
मिट्टी के ही घर बन जाते
मिट्टी का सारा संसार ॥
सदियों से लोगों ने लूटा
और फैलाया अत्याचार ।
धरती ने तो क्षमा किया 
और बनी रही सबका आधार ॥
विविध सूरमाओं ने छल से
इसको लहूलुहान किया ।
बर्बर भोग की इच्छा से ही
मिट्टी का अपमान किया ॥
किले , खाई , चोबारे , स्तम्भ
लघुता के प्रमाण बने ।
धूलधूसरित होकर कण कण
मिट्टी और पाषाण बने ॥
पृथ्वी से सारे व्योम तक
प्रकृति रूप सजाती है ।
मिट्टी अपने उदर कोश से
रूप - रंग बरसाती है ॥
मिट्टी की इस चमक दमक में
मिट्टी ही मुसकती है ।
मिट्टी के सुन्दर चेहरे बन
मिट्टी तुझे बुलाती है ॥
तू भी मिट्टी मैं भी मिट्टी
मिट्टी का मिट्टी से प्यार ।
धन भी मिट्टी मान भी मिट्टी
मिट्टी का सारा व्यापार ॥
जिनको पूजा सारा जीवन
वो मिट्टी हो जाएँगे ।
जिन चीजों का किया संग्रह
मिट्टी बन बह जाएँगे ॥
मिट्टी को मिट्टी कन्धा दे
मन्ज़िल तक पहुँचाएगा ।
चन्द आँसू की बूँद बहाकर
दिल का दर्द मिटाएगा ॥
देख चिता की ज्वाला को
विचलित सा हो जाएगा 
पल भर का वैराग्य भरम फिर
मिट्टी में मिल जाएगा ॥
कल थी मिट्टी आज भी मिट्टी
कल फिर मिट्टी ही होगी ।
मिट्टी पर मिट्टी डालो
फिर भी मिट्टी ही होगी ॥
नारायण स्मृतिः

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