भक्तो के आठ भाव जो श्री भगवान् को प्रिये है !
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१. अहिंसा (तन मन वचनसे न किसी का बुरा चाहना और ना ही करना )२.इन्द्रिये-निग्रेह (इन्द्रियोंको मनमाने विषेयोमें ना जाने देना )३. प्राणिमात्र पर दया (ये संत स्वभाव का भी लक्षण है ! संत हिरदये नवनीत समाना .....दुसरोके दुःख को अपना दुःख समझकर दूर करने की चेष्टा करना )४. शान्ति (किसी भी अवस्थामें चितका छुब्ध न होना)५. शम (मन का वशमें रहना)६.तप (स्वधर्म के पालन के लिये कष्ट सहना )७.ध्यान (अपने आराध्य देव में चित).)८.सत्य (सत्य तो अपने आपमें प्रगट है जिसे प्रगट करनेके लिये किसी सहारे की ज़रूरत नहीं पड़ती
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१. अहिंसा (तन मन वचनसे न किसी का बुरा चाहना और ना ही करना )२.इन्द्रिये-निग्रेह (इन्द्रियोंको मनमाने विषेयोमें ना जाने देना )३. प्राणिमात्र पर दया (ये संत स्वभाव का भी लक्षण है ! संत हिरदये नवनीत समाना .....दुसरोके दुःख को अपना दुःख समझकर दूर करने की चेष्टा करना )४. शान्ति (किसी भी अवस्थामें चितका छुब्ध न होना)५. शम (मन का वशमें रहना)६.तप (स्वधर्म के पालन के लिये कष्ट सहना )७.ध्यान (अपने आराध्य देव में चित).)८.सत्य (सत्य तो अपने आपमें प्रगट है जिसे प्रगट करनेके लिये किसी सहारे की ज़रूरत नहीं पड़ती
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