!! श्री गुरुभ्यो नमः !! █░░░░░░░░░░░░░░░░░░░█ * : जनक - याज्ञावल्क्य संवाद : * ~~~ { २३ } ~~~ █░░░░░░░░░░░░░░░░░░░█ नारायण ! विगत दो दिवस से यह दिव्य सत्संग “ जनक – याज्ञवल्क्य संवाद “ का विराम था ! अब फिर चलते है उन गुरुदेव भगवान के सत्संग में जहाँ गुरुदेव भगवान अपने अन्तेवासी शिष्य को " जनक - याज्ञवल्क्य संवाद " सुना रहे हैं । आप सभी सत्संगी बन्धु पुनः इस दिव्य सत्संग गंगा में स्नान कर पुण्य के भागी बनें - नारायण ! गुरदेव भगवान् कहते हैं कि हे सौम्य ? जैन लोग " अनेकान्तवाद " के नाम से अव्यवस्थितता का प्रतिपादन करते हैं । वे कहते हैं कि किसी पदार्थादि के बारे में " वह है ही " या " नहीं ही है " यों निश्चित करना गलत है , उसे इकट्ठे ही 7 सात तरह के समझना चाहिये : वह है ; वह नहीं है ; उसे कह नहीं सकते ; वह नहीं है और उसे कह नहीं सकते , वह है और नहीं है और उसे कह नहीं सकते ! ये सातों एक - साथ हर चीज़ के बारे में समझने चाहिये ऐसी उनकी मान्यता है । इस दृष्टि के अनुसार किसी को " एक ही है " यों निर्धारित नहीं कर सकते , अतः एक की भी अनेकत...